लेखनी कविता - चंदा मामा - बालस्वरूप राही
चंदा मामा / बालस्वरूप राही
चंदा मामा, कहो तुम्हारी
शान पुरानी कहाँ गई?
कात रही थी बैठी चरखा
बूड़िया नानी कहाँ गई?
सूरज से रोशनी चुरा कर
चाहे जितनी भी लाओ,
हमें तुम्हारी चाल पता हैं
अब मत हम को बहकाओ।
है उधार की चमक-धमक यह
नकली शान निराली है,
समझ गए हम चंदा मामा,
रूप तुम्हारा जाली है।